Monday, October 29, 2018

आना जाना

अपने थे तुम पहले भी, अपने हो तुम अब भी
फिर क्या है कि तुम अपने से पेश नहीं आते ।।

कभी कर जाते हो, कभी जा कर आते हो
है क्या ये कठिन इतना कि के अब जाते ।।

आने के पहले की तरंग, आने के बाद की उमंग
जाने से पहले आशा के सागर में बदल जाते ।।

जानते तो तुम हो ही कि जाने के बाद तुम्हारे
अवसाद में हम खुद को हैं पूरी तरह पाते ।।

आने जाने के ये निर्णय तुम ख़ुद ही लेते हो
फिर बाकी सारे निर्णय खुद क्यों नहीं ले पाते ।।

या लेते हो तुम वो भी, और लेते रहे हो भी
बस मेरा मन रखने को, मुझको नहीं बताते ।।

करता हूँ मैं प्रतीक्षा कि बार-बार आओ तुम
जो आते तो साथ मेरी साँसें भी तुम ले आते ।।

वो रास्ते, वो स्वाद, वो सुर, वो ठहाके
हर बार जो तुम आते तो ये मुझसे फिर मिल जाते ।।

नक्षत्र तुम मौसम, आने का तुम्हारे कोई नियम
हो माघ के तुम मेघ आंधी हो चैत्र की, जब बनता है संयोग अनायास ही चले आते ।।

है इतना भी नहीं ये अनियमित, बस मैं जानूँ - कुछ मास, बरस, एक दशक
हो मेरा सृजन तुम मेरी ही हो रचना, और तुम ये समझे कि खुद को मुझसे अधिक समझ जाते ।।

Monday, November 10, 2014

खेल

बिना कुछ साफ़ कहे तुम जो ये पैग़ाम भेजते हो
ये असरार तरीका मुझे पसन्द नहीं आता
जो खयालों को तुम लफ्ज़ों तक ईमान से ले जाते
तेरी रूह की पाकीज़गी पर यक़ीन मुझे आता

ये इश्क़ में दिमागी खेल जो तुम खेला करते हो 
जिसके हर कदम पर फतह का मज़ा तुम्हे आता
गर मेज़ पे या मैदां में मेरे सामने होते
है कौन खिलाड़ी ये मैं तुमको दिखाता 

कभी ढील मुझे देते हो कभी खींच लेते हो
लड़कपन में लड़ाए पेंचों की मुझे याद ये दिलाता 
जज़बातों को मेरे जो तुम मांझा ना बनाते
मैं खुशी से अपने दिल की पतंग तुम्हे हार जाता 

प्यादे मेरे बादशाह के लिये कुर्बान होते हैं
है उनको भी फ़र्ज़ की अज़्मत की कुछ परवाह
चालाकी से मुझे मात दे कर इतराओ जितना तुम 
मेरे प्यादों का ही रंग है 'सफ़ेद' कहलाता

पत्तों को अपने मैं भी हूँ दिल के करीब रखता
है इसमे ही तो बाज़ी की हर चाल का मज़ा
कुछ ताश में भी खेल जोड़ियों के होते हैं
है साथ मिल के जीतने में लुत्फ और आता

नहीं मुखालिफ़ की शिकस्त ही हर खेल का मक्सद
कभी जान कर भी हारने का ज़ौक चखते तुम
मैं तुझ पे सब कुछ हारने को तैयार हूँ बैठा
काश तुझ में एक खिलाड़ी का जज़बा नज़र आता 

Sunday, November 9, 2014

चाहत

कभी उन्स कहा मेरी चाहत को तो कभी कहा हब
कुछ और भी दिलचस्प नामों से बुलाते हैं इसे सब
उम्मीद हमको इस ज़माने से और क्या होती
मोहब्बत में भी तो सहूलियत देखी जाती है अब

है ये इबादत समझने की जब समझ ही ना थी
ग़लती से ही इश्क़ इसको कह दिया होता
इज़्ज़त से इसको अक़ीदत जो तुम कह सके होते
तुम इल्म पर ग़ुरूर को दिखलाते कैसे तब

कुछ जानने की कभी तुमने कोशिश तो की होती
बस फ़ैसले सुनाने की तुम चाह रखते हो
ये जानते कि सैलाब कुछ दिलों में भी होते हैं
हैं यही कि जो जुनून का बन जाते हैं सबब

चाहत की इस तशरीह से मैं खौफ़ नहीं खाता
ये मौत का रास्ता ही मेरे दिल को रास आता
तुम मिल के चाहे जितनी भी अज़ीयत मेरी कर लो
है मुझको इत्मिनान कि मेरी तरफ़ है मेरा रब 

Saturday, November 8, 2014

राह

चलें भी तो किस राह पे चलें 
ख़्वाहिश है कि उनकी चाह पे चलें 
यूँ जीने से तो साँसें भी रुक जाएंगी
अब तो ये भी उनकी हर आह पे चलें

दिन भर इस जिस्म को घसीटते रहना
तेरी हर झलक पे खुद को कोसते रहना
रहना भी है कि नहीं हम को इस जहाँ में
फ़ैसले अब ऐसे भी तेरी सलाह पे चलें

हाल-ए-दिल से काश तुम बेख़बर होते
और हम कभी तेरी नज़र में ना आते 
फिर तो इस दिल में भी एक हौसला होता 
कि चल बस एक बार तो तेरी निगाह पे चलें 

जाने कब तक चलेगा ये इम्तेहान हमारा
जाने कब पिघलेगा ज़िद्दी दिल ये तुम्हारा 
ग़ुस्सा नहीं होता मैं हूँ हैराँ ये सोच कर 
जाने कैसे लोग ऐसे गुनाह पर चलें 

Monday, November 3, 2014

शौक

वो समझते थे कि उनका शौक था हम को; ये तो बस हम जाने कि शौक उनकी सोहबत का था

कभी तो हम ने भी सोचा कि हो जाएं उन जैसे; क्या करते - कसूर रूह पर खुदा की रेहमत का था

यूं तो आसानी से दिल दिखलाने के हम कायल नहीं; पाक दिल को चीरना जज़ उनकी शख्सियत का था

एक ज़माने तक ख़यालों को कलम से रखा था दूर; पर हमारी स्याही में आज रंग ग़म-ए-उल्फ़त का था