अपने थे तुम पहले भी, अपने हो तुम अब भी ।
फिर क्या है कि तुम अपने से पेश नहीं आते ।।
कभी आ कर जाते हो, कभी जा कर आते हो ।
है क्या ये कठिन इतना कि आ के अब न जाते ।।
आने के पहले की तरंग, आने के बाद की उमंग ।
जाने से पहले आशा के सागर में बदल जाते ।।
जानते तो तुम हो ही कि जाने के बाद तुम्हारे ।
अवसाद में हम खुद को हैं पूरी तरह पाते ।।
आने जाने के ये निर्णय तुम ख़ुद ही लेते हो ।
फिर बाकी सारे निर्णय खुद क्यों नहीं ले पाते ।।
या लेते हो तुम वो भी, और लेते रहे हो भी ।
बस मेरा मन रखने को, मुझको नहीं बताते ।।
करता हूँ मैं प्रतीक्षा कि बार-बार आओ तुम ।
जो आते तो साथ मेरी साँसें भी तुम ले आते ।।
वो रास्ते, वो स्वाद, वो सुर, वो ठहाके ।
हर बार जो तुम आते तो ये मुझसे फिर मिल जाते ।।
न नक्षत्र तुम न मौसम, आने का तुम्हारे न कोई नियम ।
हो माघ के तुम मेघ आंधी हो चैत्र की, जब बनता है संयोग अनायास ही चले आते ।।
है इतना भी नहीं ये अनियमित, बस मैं जानूँ - कुछ मास, बरस, एक दशक ।
हो मेरा सृजन तुम मेरी ही हो रचना, और तुम ये समझे कि खुद को मुझसे अधिक समझ जाते ।।
फिर क्या है कि तुम अपने से पेश नहीं आते ।।
कभी आ कर जाते हो, कभी जा कर आते हो ।
है क्या ये कठिन इतना कि आ के अब न जाते ।।
आने के पहले की तरंग, आने के बाद की उमंग ।
जाने से पहले आशा के सागर में बदल जाते ।।
जानते तो तुम हो ही कि जाने के बाद तुम्हारे ।
अवसाद में हम खुद को हैं पूरी तरह पाते ।।
आने जाने के ये निर्णय तुम ख़ुद ही लेते हो ।
फिर बाकी सारे निर्णय खुद क्यों नहीं ले पाते ।।
या लेते हो तुम वो भी, और लेते रहे हो भी ।
बस मेरा मन रखने को, मुझको नहीं बताते ।।
करता हूँ मैं प्रतीक्षा कि बार-बार आओ तुम ।
जो आते तो साथ मेरी साँसें भी तुम ले आते ।।
वो रास्ते, वो स्वाद, वो सुर, वो ठहाके ।
हर बार जो तुम आते तो ये मुझसे फिर मिल जाते ।।
न नक्षत्र तुम न मौसम, आने का तुम्हारे न कोई नियम ।
हो माघ के तुम मेघ आंधी हो चैत्र की, जब बनता है संयोग अनायास ही चले आते ।।
है इतना भी नहीं ये अनियमित, बस मैं जानूँ - कुछ मास, बरस, एक दशक ।
हो मेरा सृजन तुम मेरी ही हो रचना, और तुम ये समझे कि खुद को मुझसे अधिक समझ जाते ।।